गौर से देखने मे पता चलता है कि हम नेचर या क़ुदरत में पैदा हुये है, या कहे निर्मित हुये है, इसीलिए जब मनुष्य क़ुदरत की बनाई वस्तुओं को प्रोसेसिंग करके स्वंय निर्मित करके उसका उपयोग करता है, तो इसकी क़ीमत शरीर की क्षति के रूप में वह मनुष्य चुकाता है। आयुर्वेदिक दवाईयों को छोड़कर(क्योंकि आयुर्वेदिक दवाइयां क़ुदरत द्वारा ही निर्मित है) मनुष्य निर्मित (बाक़ी सभी पैथी) दवाइयों को कितना भी खा लो, मनुष्य कभी पूर्ण स्वस्थ नही हो पाता। असम्भव है कि मनुष्य निर्मित दवाइयों से हम अपना ईलाज कर ले। हम केवल इलाज़ में कोम्प्रोमाईज़ कर सकते है। में नही जानता मनुष्य कब समझेगा की प्रकृति ही उसकी मां है, प्रकृति की माँ गाय है। हम गाय से बाहर भगवान को कहा ढूंढते है, उसमें सारे भगवान मज़े में बैठे हुये है। विचार करो, गहराई से देखो तो भगवान कही नही मिलेगा।
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